Wednesday 11 January 2012

मोमका पुतला

क्या मन हो 
सागर के पानी की तरह 
जो उछले ...लहरों की तरह ...
कुछ  ऊँचाई तक   फिर समाये 
सागरमे ...
या हो रेत के टीले की तरह 
जिसकी हो उम्र कुछ घंटो की या दिनकी 
.....
मिटटी के उस टीले की तरह 
जहाँ ना हो उपजाऊ जमीन 
केवल अटका रखी जो जगह धरा की 
या फिर हो 
पर्वत की तरह
उचाईयों को छुता 
लेकिन ..
कठोर ...
केवल  चट्टानों को अपने में समाये हुवे 
अडिग ..  अविचल ...
या हो मोम की तरह मुलायम 
पल की आँच में पिघल कर 
धराशायी होने वाला 
ओर 
मैडम तुसां 
के अजयाबघर में बने 
उन मोम के पुतलों की तरह
नकली ....
----------
  • महेशचंद खत्री .

No comments:

Post a Comment