Monday 11 March 2013

नारी ... या , ना ... आरी

आज  समाज में नारी के साथ बढ़ने वाले अत्याचारों को देखते हुये 
बरबस  मुहँ से निकल गया .....
नारी  ... या , ना ... आरी ......
           पिछले दिनों दिल्ली में घटित अमानवीय घटनाओं पश्चात सम्पूर्ण देश स्तर पर ईस घटना को निंदात्मक करार देकर विभिन्न स्तरों पर विरोध प्रदर्शन , आंदोलन , सुदृढ़ कानून हेतु ज्ञापन देकर जनहित की मांगे विधि व्यवस्था एवं सरकारी स्तर पर की गयी |
          परिणाम शून्य नजर आया , केंडल मार्च जैसे शांतिपूर्ण आंदोलनों से लेकर अन्य तीव्र आंदोलनों का परिणाम वास्तव में शून्य आया विपरीत बाजुपे, नारी अत्याचार की घटनाओं को बड़े स्तर पर प्रिंट एवं दृकश्राव्य मिडिया में उछाला गया | कल तक मिडिया में अत्याचार ग्रस्त महिला के नाम तक को छुपाये रखने के कानून का प्रावधान था , पूरी तरह मिटटी पलित कर दिया गया |
कहीं से मांग आयी कानून बनाने की और अवास्तव संशोधन का शोध हुवा ... किसी ने मांग की कानून को पीडिता का नाम दिया जाये | अगर ऐसा प्रावधान इससे पहेले होता तो शायद बाबासाहब आंबेडकर लिखित राज्यघटना का प्रयोग आज बच्चों का नाम रखने के लीये सन्दर्भ ग्रन्थ की तरह हो रहा होता |
          मूल हेतु को भटकाकर उद्देश पूर्ति के अलावा अन्य अटकले जोड़ते हुये कानून बनाने की मांग का यह तरीका क्षतिग्रस्त होता नजर आ रहा है बल्कि हो चूका है |
         क्या हम सही दिशा में जा रहे है या केवल तर्क वितर्क करते हुये समस्या के समाधान से खुद को छुपाने का रास्ता ढूंड रहे है | कभी हमारे धर्मशास्त्र ग्रंथों में सन्दर्भ मिलते है ..
यत्र  नार्यस्तू पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः |
यत्रैतास्तु पूज्यन्ते सर्वास्त्रफला: क्रिया: ||  
अगर हमारे शास्त्र हमें आज तक नारी पूजन सिखाते आये है बल्कि शास्त्रों ने हमें यह भी सिखाया जिसमे ..
पिता रक्षति कौमर्ये  , भर्ता रक्षति यौवने  |
रक्षन्ति स्थाविरे पुत्रा स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ||  
किस  प्रकार हमे स्त्री का रक्षण करना चाहिए बताया गया है फिर भी समाज में हो रही घटनाओं को क्या हम केवल कानून बनाने के बाद काबू कर पायेंगे यह एक गंभीर प्रश्न उपस्थित होता है |
            हमारे युवाओं में बढती जा रही पश्चिमी अंधानुकरण की होड , नशे की खुली उपलब्धता , दृक मिडिया पे बढती जा रही नग्नता , सिकुडते जा रहे वस्त्रप्रावरण , मोडेलिंग और अभिनेत्री बनने की होड , परिवार द्वारा दी जा रही पॉकेट मनी भी कहीं इन अत्याचारी वृत्ति को बढ़ावा दे रही है  और अन्य कारणों के अलावा सबसे बड़ा कारण नजर आता है जो ये है के आदर्शहीन कुसंस्कारित पिढी के निर्माण में माता पिताओं का बढता योगदान |
जब स्त्री पुरुष समानता की बात होती है तो शायद हम यह सोचने लगते है के हमे हमारे बच्चों को अपने खुद पे निर्भर बनाते समय उनके भविष्य निर्माण हेतु एक विशेष छुट देनी चाहिए | यह भी सत्य है और जरुरी भी,लेकिन इन संसाधनों के उपयोग को किस सीमा तक प्रतिबंधित किया जाना चाहिये ईस बारे में कुछ आलेख मातापिता के दिमाख में होना भी जरुरी है |
          इन सभी घटनाओं और घटनाक्रम को अगर हम एक और नजर से देखे तो हम क्या यह नही कह पायेंगे की ये सीधे सीधे हमारी हिंदु संस्कृति को तोडने और उध्वस्त करने का सुनियोजित षड्यंत्र है जिसे कुछ अन्य धर्मिय मतावलंबियों द्वारा हमारे देश में धर्मांतरण को बढ़ावा देने हेतु रचा गया है |केवल इन्ही प्रयोगों के द्वारा हम इन हिंदु धर्मावलंबियों को धर्मभ्रष्ट कर सकते है ऐसी इन लोगों की गन्दी सोच बन चुकी है | लेकिन वे यह नही जानते हमारे संस्कृति की जमीन में दूर तक फैली जड़ों को,जिसके बल पर ना केवल हमारे धर्मवृक्ष का रक्षण और शाखा विस्तार कर रहें है अपितु हम इसके मीठे फलों को विश्व के हर कोने में फैले प्राणिमात्र को स्वाद चखाकर उसके मन में मिठास निर्माण कर चुके है |
         अब केवल ईस देश की नारी को अपना वही रौद्र रूप समय के पड़ते स्वीकारना होगा जिसमे उसे नारी शब्द में बद्ध .... आरी को , अत्याचार के टुकड़े टुकड़े करने के लीये परावर्तित करना होगा |
गर्भ से लेकर गर्भपात गृह  तक तु कहाँ सुरक्षित है ? नारी !
भेडियों की बस्ती में तु अब शेरनी बन कर रहना सीख ले ....
यही  कहना होगा और हमे हमारे देश की स्त्री जाती को इतना सशक्त बनाना होगा |
जौहर की बातें बीत गयी अब चंडी शस्त्र उठायेगी ...गर हुवा जरुरी तो अब बहेने माँ दुर्गा बन जायेगी|
आओ  संकल्प करे .... रक्षा का, नारीशक्ती को संबल दे सबल बनाने का|
----------- केवल महिला दिन मनाने से बढ़िया महिलाओं में सुरक्षा की भावनावृद्धि हेतु सर्व रूपेण सहायताका हो हमारा संकल्प |