सूरज के ढलने के बाद
वही हर पूर्णमासी की तरह
आज फिर ...
इंतजार उस चंद्रमा का
जिसके दर्शन से ...
या फिर ...
उछलती है सागर में लहरें
क्या वाकई ...
बचपन में बहलाया जाता था
बचपन में बहलाया जाता था
जिस चाँद को मामा बनाकर ...
अब हम उस चाँद को भी नहीं छोडेंगे ...
बेच डालेंगे धरती के टुकडों की तरह
उन पूँजीपतियों को ...
उन पूँजीपतियों को ...
जिन्होंने खोखला कर दिया है धरा को ...
यही सोचता रहेता हूँ ..पूर्णमासी से अमावस तक .....
- महेशचंद खत्री .
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