एक ही ऊँचाई से
टपककर
भिन्न भार वालीं चीजें
जब धरा की ओर
बढ़कर
एक ही समय
चूमती है जमीन को ...
आंदोलित झूला
गर ,
हर आंदोलन को
लेता है बराबर समय ..
आंदोलन हो पहेला या के अंतिम ...
क्यों करते है हम
फर्क ..
ये छोटा ...ये बड़ा ...
क्या ये भी सच नहीं ........
ऊँचे पेड़ छायादार नहीं होते ?
नाही लगते उनमें मीठे फल .....
क्यों फिर
बड़ा - छोटा
पहेला - अंतिम
ऊँचा - बौना ........?
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टपककर
भिन्न भार वालीं चीजें
जब धरा की ओर
बढ़कर
एक ही समय
चूमती है जमीन को ...
आंदोलित झूला
गर ,
हर आंदोलन को
लेता है बराबर समय ..
आंदोलन हो पहेला या के अंतिम ...
क्यों करते है हम
फर्क ..
ये छोटा ...ये बड़ा ...
क्या ये भी सच नहीं ........
ऊँचे पेड़ छायादार नहीं होते ?
नाही लगते उनमें मीठे फल .....
क्यों फिर
बड़ा - छोटा
पहेला - अंतिम
ऊँचा - बौना ........?
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- महेशचंद खत्री .
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