बनता जा रहा है
मेरा मन भी अब ...
...........
जो रखा था कभी
किताब में सहेजकर
विगत जीवन...
दिल् की छवि ...
.........................
अब तो आँखों में समाया हुवा वो कल भी
ओझल होता जा रहा है
उस दृश्य की तरह
जो दिखाई देता है
उन
आँखों को
जिस आँख को हो बीमारी
' मोतीया ' बिंदु की .
क्या होगा संभव उसे देख पाना ?
पूर्व की तरह
साफ
बिना शिकन का वो चेहरा
मुस्कुराता हुवा ....
काश ..
बन सके वो
पीपल का पत्ता
फिरसे
हरा ...
भरा ...
चमकदार !
...............
मेरा मन भी अब ...
जालीदार
पीपल के पत्ते की तरह ..............
जो रखा था कभी
किताब में सहेजकर
जान से भी ज्यादा ...
पत्ते की जाली में दिखाई देता है विगत जीवन...
दिल् की छवि ...
उसका अक्स ...
धुन्दला सा.........................
अब तो आँखों में समाया हुवा वो कल भी
ओझल होता जा रहा है
उस दृश्य की तरह
जो दिखाई देता है
उन
आँखों को
जिस आँख को हो बीमारी
' मोतीया ' बिंदु की .
क्या होगा संभव उसे देख पाना ?
पूर्व की तरह
साफ
बिना शिकन का वो चेहरा
मुस्कुराता हुवा ....
काश ..
बन सके वो
पीपल का पत्ता
फिरसे
हरा ...
भरा ...
चमकदार !
...............
.महेशचंद खत्री .
No comments:
Post a Comment